8 अप्रैल 2018

जीवन से जो मिला विष-अमृत (गीतिका)

छंद- लावणी
शिल्‍प विधान- मात्रा भार 30, यति 16,14 अंत गुरु वाचिक.
पदांत- मन
समांत- आरा

जीवन से जो मिला विष-अमृत, बाँट रहा है सारा मन.
उम्र कैद का दण्‍ड जन्‍म से, काट रहा है कारा मन.

तर्पण कर भी भ्रष्‍ट कर्म के, पाप कहाँ धुल पाते हैं
आज गया कल हरिद्वार का, घाट रहा है हारा मन.

कुछ खो कर, पाने से मिलती खुशियाँ थोड़ी बहुत मगर,
कुछ पा कर खोने की पीड़ा, छाँट रहा है न्‍यारा मन.

सहिष्‍णुता कापुरुष सरीखी, लगती है अब नारी की,
शिक्षा से इस कमियों को भी, पाट रहा बंजारा मन  

मानव ने कब अपनी हठ को, छोड़ा है युग हैं साक्षी
मर कर लेता जन्‍म रहा है, ऐसा है आवारा मन.   

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