27 नवंबर 2017

जीवन की अब शाम हो चली (गीतिका)

छंद- सरसी
शिल्‍प विधान- चौपाई + दोहे का सम चरण (16,11)] अंत 21 से
                    अनिवार्य
प्रार्थना 

जीवन की अब शाम हो चली, जाना है भव पार.
हे प्रभु विमुख न हो तुझसे अब, नश्वर यह तन गार.

जप तप ध्यान भजन में दिन भर, काया रहती मग्न,
हे प्रभु माया मोह नहीं बस, रोके अब मझधार.

जो भी पाया सुख सरमाया, भाग्य कहो या कर्म,
तुझसे क्या शिकवा तेरा तो, हर क्षण था सहकार.

घर परिवार, प्रतिष्ठा देखी, देखी लूट खसोट,
सब कर्मों का खेल है पाया, भाग्य सभी का सार.

चंचल मन की थाह नहीं प्रभु, तन में दिया समुद्र,
मन मंथन कर कर्मों से प्रभु, पाए रत्न हजार.

देना हो तो बस देना प्रभु, मानव जन्‍म सदैव,
दिखलाना पथ जीवन बीते, परहित है स्‍वीकार.

धन्‍य धन्‍य हे प्रभु समक्ष हो, तेरी छवि की चाह,
हो जिह्वा पर नाम तुम्‍हारा, छोड़ूँ जब संसार.

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