31 जुलाई 2017

दोहे का धागा पिरो (दोहा गीतिका)



आज महाकवि तुलसीदासजी की जयंती है. शत शत नमन. 


छंद- दोहा
विधान-अर्द्ध सममात्रिक, 13, 24 पर यति.

दोहे का धागा पिरो, सूई कलम चलाय.
तुलसी तेरी याद में, चादर दई बनाय,

रामचरित मानस पढ़ी, जब से तुलसी आज.
घर में गीता के सहित, रोज पढ़ी अब जाय.

जो जन जन को मान्य हो, वो ही सफल प्रसंग,
जो मन में उतरे वही, कथा वही मन भाय.

तुलसी-तुलसी घर हुआ, तुलसी के सँग राम,
अब तुलसी हिरदय लगी, धन्य हुई यह काय.

तुलसी हटे न हृदय सौं, तुलसी जय श्री राम.
आकुलतन हो राममय, तुलसी करो उपाय.

कभी नहिं भूलें (गीतिका)



छंद- राधिका (सम मात्रिक) वाचिक       
मात्रा भार- 13, 9 
विधान- आरंभ गुरु, अंत दो गुरुओं से एवं यति से पहले व बाद में त्रिकल
            आवश्‍यक (12/21/111) (वाचिक) 
पदांत- कभी नहिं भूलें 
समांत- आर

उपकार किसी का यार, कभी नहिं भूलें.
उपहार, प्‍यार, सत्‍कार, कभी नहिं भूलें

जीवन में अनुशासन का’, है महत्‍व बहुत,
आचार विचार विहार,  कभी नहिं भूलें.

शिक्षा, दीक्षा, गुरु, जनक, जननी संस्‍कार,
व्‍यवहार और आभार, कभी नहिं भूलें.

ऋण उत्‍तरदायित्‍व है, कर्तव्‍य समझ कर,
दुनियादारी में’ उधार, कभी नहिं भूलें

जीवन ये आदर्श जब, बने ‘आकुल’ तब,
अनुकरण करे संसार, कभी नहीं भूलें.

27 जुलाई 2017

सफल जीवन है (गीतिका)

छंद- राधिका (सम मात्रिक)(मापनी मुक्‍त) 
मात्रा भार- 13, 9 = 22
विधान- (1) आरंभ गुरु से, अंत दो गुरुओं से (2) यति से पहले व बाद में त्रिकल आवश्यक (12/21/111)(वाचिक)
पदांत- जीवन है
समांत- अल

जो भी मिलजुल के जिये, सरल जीवन है.
छद्म, द्यूत, छल से जिये, गरल जीवन है.

मंजिल पाते हैं वही, अग्निपथ चलते,
जो उद्देश्य लिए जिए, असल जीवन है.

सागर मंथन से अमृत, हलाहल मिलता,
सुरभित दलदल में जिये, कमल जीवन है.

श्रीहीन होता सदैव, परे माया से,
धीरज के धन से जिए, महल जीवन है.

‘आकुल’ भाग्यवान बने, भू पर भगवान,
कलिमल स्वच्छ‍ करे जिए, सफल जीवन है.

26 जुलाई 2017

चल सावन आया (गीतिका)

गीतिका
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पदांत- चल सावन आया
समांत- ऊलें.


ऐ आली, झूला झूलें, चल सावन आया.
पींगें देकर, नभ छूलें, चल सावन आया.

तीज, अमावस, होंगे पूरे, सभी मनोरथ,
कुछ पल तो, सुख-दुख भूलें, चल सावन आया.

लहर-लहर, लहराये चूनर, टप-टप बूँदें,
उड़ें आसमाँ, लट चूलें, चल सावन आया.

साँसें उठती-गिरती, छलका जाये यौवन,
तन-मन में, होती हूलें, चल सावन आया.

जी करता है, पी सँग झूलूँ, हार कुबूलूँ,
सोचूँ तो, साँसें फूलें, चल सावन आया.

पींग- झोला, चूल- शिखा, चोटी, हूल- हूक, टीस, खुशी

25 जुलाई 2017

दो मुक्‍तक (विलोम शब्‍द)



आलस्‍य 
बनें नहीं वाचाल, करें नहिं, तर्क-वितर्क कभी.
चाटुकार से बचें, रखें न, बहुत सम्प‍र्क कभी.
व्यस्त रखें, श्रीमान् स्वयं को, करें नहीं आलस्‍य,
दृष्टि रखें कब, आँखे दोनों, करती फर्क कभी.

स्‍फूर्ति 
रखें स्‍फूर्ति, मगर आवेश में, निर्णय लें न कभी.
रहें सजग, जैसे प्रहरी, आलस्य करें न कभी.
गिद्ध सदृश हो दूरदृष्टि, चींटी सी हो कोशिश,
घाघ स्यार सा हो, कितना भी, सिंह डरें न कभी.
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