30 मई 2010

"आकुल" की नई पुस्‍तक "जीवन की गूँज" प्रकाशित। लोकार्पण की घोषणा शीघ्र

लंबे समय से प्रतीक्षित गोपाल कृष्‍ण भट्ट "आकुल" की पुस्‍तक "जीवन की गूँज" काव्‍य संग्रह आखिरकार प्रकाशित हो ही गया। 240 पृष्‍ठीय इस पुस्‍तक में जीवन के उनके विगत 50 वर्षों की साहित्यिक रचना संसार की रचनायें प्रकाशित हैं। 9 खंडों में बनी इस पुस्‍तक में श्रीकृष्‍णर्पणम्, जीवन की गूँज, शृंगार सजनी, होली, सखा बत्‍तीसी प्रमुख खंड हैं। राजस्‍थान में और विशेषकर कोटा में विशेष लू और तीव्र गर्मी के क़हर के कारण अभी पुस्‍तक का लोकार्पण स्‍थगति रखा गया है। शीघ्र ही पुस्‍तक के लोकार्पण की तिथि घोषित की जायेगी।

13 मई 2010

डॉ0 नलिन की पुस्‍तक "गीतांकुर" का विमोचन

कोटा। 2 मई 2010 को सायं 5 बजे कोटा के विज्ञाननगर में मयूखेश्वर महादेव मंदिर प्रांगण की हरियाली और मनोरम वातावरण में छोटी बहर के ग़ज़लकार के रुप मे पहचाने जाने वाले शायर, गीतकार, कवि और पेशे से चिकित्सक डॉ0 नलिन की तीसरी पुस्तक “गीतांकुर” का विमोचन कोटा के जाने माने कवियों, साहित्यकारों और कोटा की अनेकों साहित्यिक संस्थाओं के सदस्यों के मध्‍य सम्पन्न हुआ।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद् राजस्थान, कोटा द्वारा आयोजित जनावतरण समारोह की अध्यक्षता प्रख्यात वरिष्ठ साहित्यकार डॉ0 ओंकारनाथ चतुर्वेदी ने की। मुख्य अतिथि मयूखेश्व‍र महादेव मंदिर के संस्थापक प्रख्यात साहित्यकार शायर बशीर अहमद मयूख और श्री भगवती प्रसादजी गौतम थे। कार्यक्रम मंचासीन साहित्यकारों को पुष्पहार पहना कर स्वागत के साथ हुआ। पुस्तक के विमोचन के बाद पुस्तक परिचय श्रीमती (डॉ0) विमलेश श्रीवास्तव ने दिया। कार्यक्रम के मध्य में श्रीमती संगीता सक्सैना ने पुस्तक “गीतांकुर” के दो गीतों “पवन दुधारी उर पर मत धर” और “चंग बाजे संग साजे” को अपने स्वर दिये और कार्यक्रम को चार चांद लगा दिये। डॉ0 चतुर्वेदी के अध्यक्षीय भाषण और साहित्यकार अरविंद सोरल, अध्यक्ष साहित्य परिषद् के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। कार्यक्रम के अंत में मचासीन साहित्यकारों, श्रीमती संगीता सक्सैना, रम्‍मू भैया आदि को प्रशस्ति पत्र और उत्तरीय देकर डॉ0 नलिन ने सम्मानित किया। कार्यक्रम का समापन पधारे सभी साहित्यकारों और अतिथियों को “गीतांकुर” पुस्तक भेंट और अल्पाहार से हुआ। कार्यक्रम का संचालन रामेश्वर शर्मा “रम्मू भैया” ने किया। कार्यक्रम में पधारे साहित्‍यकारों में कोटा के जाने माने साहित्यकार श्री सर्वहारा, अखिलेश अंजुम, चांद शेरी, रघुनाथ मिश्र, ब्रजेंद्र कौशिक, सुश्री कृष्णा कुमारी कमसिन, गोपाल कृष्ण भट्ट “आकुल”, नरेंद्र चक्रवर्ती ”मोती”, आर सी शर्मा आरसी, वीरेंद्र विद्यार्थी, रामकरण सनेही आदि अनेकों कवि और कवियत्रियों ने डॉ0 नलिन को बधाई दी।

9 मई 2010

माँ


मैं संतुष्‍ट हूं
चलने उठने बैठने
खाने पीने नहाने धोने
यहाँ तक कि सोते समय भी
उसे ध्‍यान रहता है
मेरे होने का।
मुझे पूरा विश्‍वास है
बाहर की दुनिया में भी
वह मेरा ध्‍यान रखेगी।
मुझे दुलरायेगी, प्‍यार देगी
ध्‍यान रखेगी मेरा
वैसे ही जैसे इन दिनों रख रही है।
अब तो मैं भी समझने लगा हूं
मुझे बाहर की दुनिया दिखाने को
लालायित हैं सभी।
माँ भी बहुत रोमांचित है
मुझे भी ललक है
माँ को देखने की
माँ के आँचल में छिपने की
माँ की उँगली पकड़ कर
दुनिया देखने की।
जाने क्‍यूँ लगता है
माँ के बिना मैं भी
अधूरा रहूँगा
क्‍यों कि माँ को कहते सुना है
मेरे बिना वह भी अधूरी है।
ऐसा क्‍यूँ कहा उसने ?
उसके अधूरेपन को
पूरा करना है।
उसे सम्‍पूर्ण करना है।

मदर्स डे पर -आकुल

6 मई 2010

सन् 9 का लेखा जोखा, 10 का न हो ऐसा झरोखा

बीती जो बिसराओ, बीते, साल न ऐसा दस।
चमत्‍कार भले ना हों, बस, हो न तहस नहस।।

आयल डिपो, हादसा पुल का, आतंकी घटनायें।
कमरतोड़ महंगाई, कितना भ्रष्‍टाचार गिनायें।।

क्षति हुई सर्वोपरि दस जिसकी होगी ना भरपाई।
चमत्‍कार कुछ कम ही हुए, देने को सिर्फ़ बधाई।।

जयपुर, मुंबई ताज होटल की आतंकी घटनायें।
ऑयल डिपो जला, सैंसेक्‍स धराशायी मुंह बायें।।

स्‍वाइन फ्लू का क़हर, हुई चीनी भी महंगी ऐसी।
फ़ीके रहे त्‍योहार, दाल सब्‍जी़ भी हुई विदेशी।।

गिरी भाजपा उल्‍टे मुंह, कांग्रेस केंद्र में आई।
हुए धराशायी गढ़ जिनने दी थी राम दुहाई।।

नौ में दुर्घटनायें रेल की हुई बहुत जन हानि।
सुविधायें तो बढ़ीं, सुरक्षा घटी प्रभु ही जानी।।

अनिवासी भारतीयों ने नेताओं को भ्रष्‍ट बताया।
आस्‍ट्रेलिया में नस्‍लवाद का दुष्कृत्‍य सामने आया।।

बल्‍ला चला सचिन का वे महारथी बने क्रिकेट में।
बाकी खेल हुए चौपट सब राजनीति की ऐंठ में।।

वर्ष अनूठा होगा क्‍योंकि अंक है ‘दस’ का इसमें।
हो सकते हैं कई हादसे चमत्‍कार भी इसमें।।

पौ बारह ना हो दस नम्‍बरियों की ‘आकुल’ दस में।
चमत्‍कार जल थल नभ हानि ना मानव के बस में।।
-आकुल





2 मई 2010

सान्‍निध्‍य स्रोत ई पत्रिका आरंभ

कोटा (राजस्‍थान) से 1995 में आरम्‍भ हुई दाक्षिणात्‍य वैल्‍लनाडु ब्राह्मण समाज के नव निर्माण की रचनात्‍मक त्रैमासिक पत्रिका की सहयोगी ई- पत्रिका के रूप में इसे अस्‍थाई रूप में विकसित किया जा रहा है। पत्रिका के सम्‍पादक गोपाल कृष्‍ण भट्ट 'आकुल' ने इसे समाज के युवा वर्ग को आह्वान के रूप में लिया है, और उनकी समाज के लिए उपलब्‍धता के संदर्भ में आरंभ किया है। अब देखना यह है कि कौन कितना सहयोगी बनता है और कितने इसे अपनाते हैं।