31 मार्च 2024

सूर्य अब होने लगा है प्रात से ही तेज

 गीत 
छंद- रूपमाला
मापनी- 2122 2122 2122 21 

सूर्य अब होने लगा है प्रात से ही तेज। 

धूप में होने लगा है ताब भी अब तेज।।

गिर रहे हैं पात सूखे आजकल हर ओर,
क्‍या सड़क घर बाग पथ पर है हवा पुरजोर,
राह खोलेगी नई, पतझड़ हवा के साथ,
आ गया हर पेड़ पर नव पल्‍लवों का दौर।

अब हवा बनने लगी है लाय जैसी तेज।
धूप में होने लगा है ताब भी अब तेज।।

अब बसंती ऋतु को आया ग्रीष्‍म का संदेश,
भेजना पतझड़ सहित पातों का भी अवशेष,
ना भड़क जाए अनल आए न झंझावात,
अब हवा में हो रहा है है लाय का प्रवेश। 

पात ना कोई जले सेते यही सरखेज,
धूप में होने लगा है ताब भी अब तेज।।

सरखेज (ज़रखेज)-  बंंजर से बनी उर्वर भूमि

30 मार्च 2024

संंस्‍कार वो दें जिनसे निभाव हो

गीतिका
छंद- इंद्रवंशा (वर्णिक )
मापनी- 221 221 121 212 (त त ज र)
पदांत- हो
समांत- आव
संस्‍कार वो दें, जिनसे निभाव हो।
छोटे बड़ों से, सबसे लगाव हो।1।
.-.
हालात रोकें, फिर भी पढ़ें-लिखें,
माता-पिता को, कुछ ना तनाव हो।2।
.-.
बोलें नहीं बोल, बुरे कभी कहीं,
चाहें तभी दें, कुछ भी सुझाव हो।3।
.-.
झेले सभी कष्‍ट, कभी भुला सकें,
दें संग साथी, उनका चुनाव हो।4।
.-.
मानाकि होता, समयानुसार ही,
तो भी सदा, ईश्‍वर से जुड़ाव हो।5।
.-.
नामी गिरामी, बन के अहं चढ़े,
ऐसे जनों से, अपना दुराव हो ।6।
.-.
कर्तव्‍य दायित्‍व, सदा निभा सकें,
नि:स्‍वार्थ हो, 'आकुल' ना दबाव हो।7।
-00-

29 मार्च 2024

धरती गगन को नित मिलाने सूर्य लाता है वहाँँ

गीतिका
छंद- हरिगीतिका
प्रदत्त मापनी- 2212 2212 2212 2212
पदांत- है वहाँँ
समांत- आता

धरती गगन को नित मिलाने सूर्य लाता है वहाँ।
अभिसार बिन्‍दू को प्रकाशित कर मिलाता है वहाँ।1

जब इंद्रधनुषी चूनरी ओढ़े धरा पहुँचे क्षितिज,
नित फैलती है लालिमा नभ पर बिछाता है वहाँ।2
जग को लुभाता है उदित हो भेद रखता है वहीं,
उग कर क्षितिज से ही उसे जग से छिपाता है वहाँ।3

जग नित्य क्रम में व्यस्त फुरसत है कहाँ जो जान ले,

सूरज धरा का प्रेम ही ऊर्जा लुटाता है वहाँ।4

उद्देश्य हो जीवन सँवारे प्रेम है सच्चा यही,

युग से जगत् सूरज के हरदम गीत गाता है वहाँ।5


25 मार्च 2024

मने पर्व दे चलें बधाई

छेड़ छाड़ भी सबको भाई
लाख दुहाई दें चाहे वे
रँगना तो है सबको भाई।
रंग लगाएँँ मीठा खाएँ
मने पर्व दे चलें बधाई।   

मौसम ने ली है अँगड़ाई
तन मन में उमंग है छाई
सतरंगी रँग देना चाहे
सूखे रँग से हो रंगाई
पानी से जो खेलें बेरँग
होते वही निपट हरजाई।

रँग से जीवन में रंगीनी
खुशबू जिसमें भीनी भीनी
खुशियों का जिसमें है केसर
जैसे मधु में हो ना चीनी
मने मधूत्सव गाते रसिया
होली की मस्‍ती 
गोपी राधा गोप कन्हाई।

त्योहारों का मोह न छूटे
मनुहारों से कभी न रूठे
सबसे पहले उन्हें बचाओ
जबरन कोई भाग्य न फूटे
जो करते काला मुँह बचना
होली ने तो प्रीत बढ़ाई।

होली में अभिसार न हो बस
हमजोली हद पार न हो बस
जीवन में मधुमास खिलेगा
आभारी हो भार न हो बस
ये वो जिनने द्वेष द्रोह की
पहले होली नहीं जलाई।

प्रेम और सौहार्द न बातें
पर्वोत्सव तो हैं सौगातें
जिसने ढाई आखर सीख
करते कभी नहीं वे घातें
जीवन को रंगीन बनाने
मने पर्व दे चलें बधाई।

--00--



24 मार्च 2024

सजने लगा है, रंग का, बाजार भी

गीतिका
छंद- मधुवल्लरी (मापनीयुक्त मात्रिक)
मापनी- 2212 2212 2212
पदान्त- भी
समान्त- आर
सजने लगा है, रंग का, बाजार भी।
पिचकारियों की, आज है, भरमार भी।
**
रंगोलियाँ, बनने लगीं, दर आँगने,
होने लगे हैं, प्रीत में, मनुहार भी।
**
उपवन सभी, लादे हुए हैं, बोर अब
भँवरे कई, करने लगे, गुंजार भी।
**
चलने लगे, होली-मिलन के, दौर अब,
हर ओर है, उल्लास, पारावार भी।
**
होली नहीं है, बाल-गोपालों बिना,
बच्चों सहित आए सभी, परिवार भी
**
अपनी पसंदी, रंग अरु पिचकारियाँ,
झूमें लिए, बच्चे करें, किलकार भी।
**
ले के चले, गेहूँ-चने की, बालियाँ,
नमकीन के, सँग में, मिठाई चार भी।
**
होली जलेगी, और होगी, जीत फिर,
सौहार्द के सँग सत्य की इस बार भी।
**
आओ मनाएँ, रँग लगा, दें इक मिसाल,
त्योहार आते, संग लाते, प्यार भी।
-0- 

22 मार्च 2024

होली है होली है भाई यह ब्रज की होली है

 गीत

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होली है होली है भाई यह ब्रज की होली है।
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धूम मची है धूम मची है होली है होली है।
बरसाने में रार मची है होली है होली है।
सभी जगह होरी मनती पर बरसाने में होरा,
नंदगाँव बरसाने जैसी होली ही होली है।
होली है होली है भाई यह ब्रज की होली है।।1।।
***
लड्डू लूटो, लट्ठ मार होली में तुम भी जाओ,
नंदगाँव से बरसाने तक होली में रँग जाओ,
मथुरा वृन्दावन की होली के क्या कहने भाई,
बन्दर भी यहाँ होली खेलें, उनसे भी रँग जाओ।
पर उनके ना रंग डालना उनकी भी टोली है।
होली है होली है भाई यह ब्रज की होली है।।2।।
***
शहनाई ढफ झाँझ मंजीरे चिमटा ढोल मृदंगा ।
देखें दूर से लट्ठ मार होली में ना लें पंगा।
नंदगाँव के छोरे आएँ छोरी बरसाने की,
लट्ठ मार के कृत्रिम युद्ध को ही कहते हुड़दंगा।
इतना जोश गालियाँ दें फिर भी मीठी बोली है।
होली है होली है भाई यह ब्रज की होली है।।3।।
***
दिन भर होली खेलें होली साँझ ढले रुकते हैं।
राधे रानी के मंदिर जा सभी गले मिलते हैं।
तकरार रार भूल कर आपस में देते हैं लड्डू,
भाँग, ठँडाई, रबड़ी के कुल्हड भी कम पड़ते हैं।
तब निहारना निश्छल, हर गोपी कितनी भोली है।
होली है होली है भाई, यह ब्रज की होली है।।4।
-आकुल, कोटा (मुक्तक-लोक)

21 मार्च 2024

ऐ कविता तू अब खुश हो जा

(विश्‍व कविता दिवस पर)
गीतिका
छंद- चौपाई 
पदांत- 0
समांत- ओजा 

ऐ कविता तू अब खुश हो जा.
माँग न मन्‍नत  मत रख रोजा.

तू ही मिली चले जिस पथ पर
जिसने तुझको जब भी खोजा.

तेरा तो अपना साहिल है
अन्‍य विधा का अपना मौजा

तूने उनको दिये उजाले
तू अब भी है  शमे-फरोज़ा

नारी रूप दिया निसर्ग ने
अब तू स्‍वर्ग सरीखी हो जा

मुक्तछंद में गाते तुझको
लोकगीत लेकर अलगोजा.

तुझसे मंच सभी ने लूटा,
और भरा है अपना गोजा.